शक्ति दो प्रभु , शक्ति दो !
शक्ति दो प्रभु , शक्ति दो !
कष्ट जीवन में मेरे प्रभु
दुःख जीवन में मेरे प्रभु
कष्ट को मैं वहन कर लूँ
दुःख को मैं सहन कर लूँ
शक्ति दो प्रभु , शक्ति दो !
कुछ हुआ मुझसे जुदा है
ले गया अंतिम विदा है
उसको हे प्रभु मुक्ति देना
मुझको हे प्रभु शक्ति देना
शक्ति दो प्रभु , शक्ति दो !
एक दिन सबको है जाना
सब सही है , मैंने माना
मोह से है कष्ट होता
मोह से मन भी है रोता
शक्ति दो प्रभु शक्ति दो !
सर्वधर्म भजन - एक संकलन स्थान ऐसे भजनों का जो मानवता को प्रिय हो. जो ईश्वर-गीत किसी एक धर्म को प्रिय हो लेकिन अन्य धर्मों को रास न आये , वो इस संग्रह के लिए उपयुक्त नहीं है. विभिन्न भजनकारों की रचनाओं को यहाँ भजनकार के नाम के साथ सम्मिलित किया जाएगा .
मन तरंग
Wednesday, July 27, 2011
Wednesday, July 6, 2011
यज्ञ एक क्रांति है
श्रेष्ठ कर्म यज्ञ है , परम धर्म यज्ञ है
आपस के प्रेम का , सत्य मर्म यज्ञ है
यज्ञ विश्व शांति है , यज्ञ बिन अशांति है
जीवन के तिमिर में, यज्ञ एक क्रांति है
यज्ञ वेद गीत है, यज्ञ विश्व मीत है
यज्ञ के बिन हार है , यज्ञ से ही जीत है
यज्ञ तो सुगंध है , यज्ञ गुण अबंध है
वायु के सुधार का, यज्ञ ही प्रबंध है
यज्ञ मन की शक्ति है , यज्ञ ईश भक्ति है
यज्ञ व्यक्ति से नहीं , यज्ञ से ही व्यक्ति है
Wednesday, May 18, 2011
सर्वे भवन्तु सुखिनः
सुख की वर्षा करो नाथ अब
दुःख के कारण दूर करो प्रभु
दुःख दुनिया से हरो नाथ अब !
सुख के दाता तुम हो प्रभुजी
दुःख है हमरे काज
हम अज्ञानी, हम हैं मूरख
हम पर अपना धरो हाथ अब !
जब देखें सब अच्छा देखें
बुरा न देवें ध्यान
ऐसी आँखें दे दो हमको
मन में श्रद्धा भरो नाथ अब !
Tuesday, February 22, 2011
ईश्वर ! ईश्वर ! ईश्वर !
ईश्वर ! ईश्वर ! ईश्वर !
पंछियों के कलरव में
जंगलों के नीरव में
कोयल की कुहुक में
चिड़ियों की चहक में
होता है एक स्वर -
ईश्वर ! ईश्वर ! ईश्वर !
वर्षा की टप टप में
मेढक की टर टर में
बिजली की तड़पन में
पत्तों की खडकन में
होता है एक स्वर -
ईश्वर ! ईश्वर ! ईश्वर !
नव-शिशु के रोने में
चुप होके सोने में
नन्ही सी धड़कन में
हलकी सी सिहरन में
होता है एक स्वर -
ईश्वर ! ईश्वर ! ईश्वर !
Wednesday, February 16, 2011
तन मंदिर
जीवन को अर्थ दीजिये
सांसे मत व्यर्थ लीजिये
क्षण क्षण का मोल बहुत है
हर दिन कुछ कर्म कीजिये
जीवन को अर्थ दीजिये
मंदिर है तन आपका
सांसे हैं क्रम जाप का
ईश्वर साक्षात् आत्मा
ईश्वर की भक्ति कीजिये
जीवन को अर्थ दीजिये
बुद्धि है चिंतन मनन
मन जिसमे भगवत भजन
भोजन नैवैध्य देव का
भावना से भोग कीजिये
जीवन को अर्थ दीजिये
ईश्वर की पूजा है कर्म
कर्म को ही समझे बस धर्म
स्वस्थ मन शरीर स्वस्थ हो
योग प्राणायाम कीजिये
जीवन को अर्थ दीजिये
मंदिर को साफ़ कीजिये
स्नान ध्यान आप कीजिये
तन मन को निर्मल करें
तन का अभिषेक कीजिये
जीवन को अर्थ दीजिये
पूजा का फल मिलेगा
जीवन को बल मिलेगा
चित्त में प्रसन्नत्ता रहे
जीवन दीर्घायु कीजिये
जीवन को अर्थ दीजिये
सांसे मत व्यर्थ लीजिये
क्षण क्षण का मोल बहुत है
हर दिन कुछ कर्म कीजिये
जीवन को अर्थ दीजिये
मंदिर है तन आपका
सांसे हैं क्रम जाप का
ईश्वर साक्षात् आत्मा
ईश्वर की भक्ति कीजिये
जीवन को अर्थ दीजिये
बुद्धि है चिंतन मनन
मन जिसमे भगवत भजन
भोजन नैवैध्य देव का
भावना से भोग कीजिये
जीवन को अर्थ दीजिये
ईश्वर की पूजा है कर्म
कर्म को ही समझे बस धर्म
स्वस्थ मन शरीर स्वस्थ हो
योग प्राणायाम कीजिये
जीवन को अर्थ दीजिये
मंदिर को साफ़ कीजिये
स्नान ध्यान आप कीजिये
तन मन को निर्मल करें
तन का अभिषेक कीजिये
जीवन को अर्थ दीजिये
पूजा का फल मिलेगा
जीवन को बल मिलेगा
चित्त में प्रसन्नत्ता रहे
जीवन दीर्घायु कीजिये
जीवन को अर्थ दीजिये
Saturday, February 12, 2011
मन के दरवाजे से प्रभु आयेंगे
जब मंजिल कहीं नजर नहीं आती हो
राहों की मुश्किल तुम्हे रुलाती हो
जब नभ पर अँधियारा बढ़ आया हो
और तेज हवा से अंधड़ आया हो
तब हाथों को ले जोड़ ' प्रभो ' कहना
और नैनो को कर मूँद 'प्रभो' कहना
प्रभु पास तुम्हारे चल कर आयेंगे
दोनों हाथों से तुम्हे उठाएंगे !
जब मन में कोई उलझन हो भारी
जब उथल पुथल लगती दुनिया सारी
जब सारे रस्ते बंद नजर आते
जब प्रश्नों के उत्तर नहीं मिल पाते
तब मन में करना ध्यान और कहना
'प्रभु मदद करो, अब चुप मत रहना'
मन के दरवाजे से प्रभु आयेंगे
और सारे प्रश्नों को सुलझाएंगे
जब सारे अपने बेगाने लगते
जाने पहचाने अनजाने लगते
जब लोगों पर विश्वास ख़त्म होता
अपनों के हाथों घोर जख्म होता
तब उसको अपना मान, शांत होना
उसके चरणों में बैठ दर्द रोना
सर सहलाने को तब प्रभु आयेंगे
आंसू पोछेंगे तुम्हे मनाएंगे
Saturday, January 29, 2011
मुझे सुख दे !
मुझे सुख दे ! मुझे सुख दे !
प्रभो मेरे , मुझे सुख दे !
मगर इतना ना दे मुझको
अति सुख ही, अति दुःख दे !
मुझे धन दीजिये इतना
कि मैं जीवन बसर कर लूँ
मेरे परिवार को पालूं
कि पूरी हर कसर कर लूँ
मगर दर पे कोई आये
वो खाली हाथ ना जाए
धरा की सारी निर्धनता
तुम्हारे धन से मैं हर लूँ
प्रभो करबद्ध विनती है
दया कर दान दे देना
अँधेरे में ना भटकूँ मैं
मुझे वह ज्ञान दे देना
अविद्या का तिमिर इस विश्व में
रह जाए ना बाकी
मुझे ऐसी ऊंचाई पर
सूर्य सम स्थान दे देना
बीमारी पास ना आये
मुझे तन दीजिये ऐसा
कि जिसमे शक्ति हो इतनी
कि जिसमे तेज हो ऐसा
कोई निर्बल दुखी लाचार पर
यदि जुल्म करता हो
दुष्ट को दंड देने को
रहे तैयार तन ऐसा
मुझे दिल दीजिये ऐसा
जो अपने दुःख सहन कर ले
पड़े कोई विपत्ति तो
उसे हंस कर वहन कर ले
मगर जो सह सके ना कष्ट
औरों के परायों के
हो करुणा से भरा इतना
जो मन भीगे नयन कर ले
मुझे धन पर मुझे तन पर
कभी अभिमान मत देना
मुझे अपने किये पर विश्व में
गुण गान मत देना
मुझे जयमाल मत देना
मुझे जयकार मत देना
मुझे अपमान मत देना
मुझे सन्मान मत देना
मुझे मेरे वतन से प्यार
स्वाभिमान दे देना
मुझे माता की ममता और
पिता का मान दे देना
मेरे मन में रहे संतोष
हरदम हर अवस्था में
मेरे होठों पे निश्छल
स्नेह कि मुस्कान दे देना
(कवि - महेंद्र आर्य )
प्रभो मेरे , मुझे सुख दे !
मगर इतना ना दे मुझको
अति सुख ही, अति दुःख दे !
मुझे धन दीजिये इतना
कि मैं जीवन बसर कर लूँ
मेरे परिवार को पालूं
कि पूरी हर कसर कर लूँ
मगर दर पे कोई आये
वो खाली हाथ ना जाए
धरा की सारी निर्धनता
तुम्हारे धन से मैं हर लूँ
प्रभो करबद्ध विनती है
दया कर दान दे देना
अँधेरे में ना भटकूँ मैं
मुझे वह ज्ञान दे देना
अविद्या का तिमिर इस विश्व में
रह जाए ना बाकी
मुझे ऐसी ऊंचाई पर
सूर्य सम स्थान दे देना
बीमारी पास ना आये
मुझे तन दीजिये ऐसा
कि जिसमे शक्ति हो इतनी
कि जिसमे तेज हो ऐसा
कोई निर्बल दुखी लाचार पर
यदि जुल्म करता हो
दुष्ट को दंड देने को
रहे तैयार तन ऐसा
मुझे दिल दीजिये ऐसा
जो अपने दुःख सहन कर ले
पड़े कोई विपत्ति तो
उसे हंस कर वहन कर ले
मगर जो सह सके ना कष्ट
औरों के परायों के
हो करुणा से भरा इतना
जो मन भीगे नयन कर ले
मुझे धन पर मुझे तन पर
कभी अभिमान मत देना
मुझे अपने किये पर विश्व में
गुण गान मत देना
मुझे जयमाल मत देना
मुझे जयकार मत देना
मुझे अपमान मत देना
मुझे सन्मान मत देना
मुझे मेरे वतन से प्यार
स्वाभिमान दे देना
मुझे माता की ममता और
पिता का मान दे देना
मेरे मन में रहे संतोष
हरदम हर अवस्था में
मेरे होठों पे निश्छल
स्नेह कि मुस्कान दे देना
(कवि - महेंद्र आर्य )
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