मन तरंग

मन तरंग
लहरों सा उठता गिरता ये मानव मन निर्माण करता है मानवीय मानस चित्रण का

Tuesday, February 22, 2011

ईश्वर ! ईश्वर ! ईश्वर !

ईश्वर ! ईश्वर ! ईश्वर !
 
पंछियों  के कलरव में
जंगलों के नीरव में
कोयल की कुहुक में
चिड़ियों की चहक में
होता है एक स्वर -
ईश्वर ! ईश्वर ! ईश्वर !
 
वर्षा की टप टप  में
मेढक की टर टर में
बिजली की तड़पन में
पत्तों की खडकन में
होता है एक स्वर -
ईश्वर ! ईश्वर ! ईश्वर !
 
नव-शिशु के रोने में
चुप होके सोने में
नन्ही सी धड़कन में
हलकी सी सिहरन में
 होता है एक स्वर -
ईश्वर ! ईश्वर ! ईश्वर !

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