आनंद दायक है प्रभु ,
आनंद देता है
मूढ़ है पर आदमी
दुःख ढूंढ लेता है
ईश्वर ने क्या दिया कोई -
कहने की बात है ?
सब दिख रहा चारों तरफ
यूँ साफ़ साफ़ है
रहने को दी है ये धरा
सर पे है आसमान
लेने को सांस वायु है
जिसमे बसे है प्राण
पीने को मीठा जल दिया
खाने को फल और शाक
बीजों में भर दी फसल यूँ
उगता रहे अनाज
मानव को सुन्दर तन दिया
जिसमें मिले सब अंग
हर अंग के उपयोग से
जीने का मिलता ढंग
सागर दिए नदिया भी दी
बादल बने अनंत
जब वृष्टि बन कर जल गिरे
आ जाता है वसंत
पत्तों को उसने रंग दिया
फूलों को उसने रूप
सूरज में भर दी रौशनी
जो आ रही बन धूप
रातों को देकर चाँद को
तारे सजाये हैं
पृथ्वी पे जिसकी चाँदनी
चादर बिछाये है
सबसे बड़ा उपकार उसने
हम पे है किया
चिंतन दिया , मनन दिया
मष्तिष्क जब दिया
आनंद देता है
मूढ़ है पर आदमी
दुःख ढूंढ लेता है
ईश्वर ने क्या दिया कोई -
कहने की बात है ?
सब दिख रहा चारों तरफ
यूँ साफ़ साफ़ है
रहने को दी है ये धरा
सर पे है आसमान
लेने को सांस वायु है
जिसमे बसे है प्राण
पीने को मीठा जल दिया
खाने को फल और शाक
बीजों में भर दी फसल यूँ
उगता रहे अनाज
मानव को सुन्दर तन दिया
जिसमें मिले सब अंग
हर अंग के उपयोग से
जीने का मिलता ढंग
सागर दिए नदिया भी दी
बादल बने अनंत
जब वृष्टि बन कर जल गिरे
आ जाता है वसंत
पत्तों को उसने रंग दिया
फूलों को उसने रूप
सूरज में भर दी रौशनी
जो आ रही बन धूप
रातों को देकर चाँद को
तारे सजाये हैं
पृथ्वी पे जिसकी चाँदनी
चादर बिछाये है
सबसे बड़ा उपकार उसने
हम पे है किया
चिंतन दिया , मनन दिया
मष्तिष्क जब दिया
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