मन तरंग

मन तरंग
लहरों सा उठता गिरता ये मानव मन निर्माण करता है मानवीय मानस चित्रण का

Monday, September 10, 2012

ईश्वर


अनादि तुमनिरांत तुम
प्रचंड तुमप्रशांत तुम  

सूक्ष्म तुमविराट तुम
हो श्रृष्टि के सम्राट तुम

इस श्रृष्टि का निर्माण तुम
इस श्रृष्टि का संहार तुम

अनंत तुमअजन्म तुम
हो अजर अमर अभय तुम

व्यापक हो , निराकार तुम
सम्पूर्ण निर्विकार तुम

न्यायी हो दयालु हो तुम
अनुपम हो कृपालु हो तुम

हो सत्य तुम, हो नित्य तुम
आनंद तुमपवित्र तुम

भगवान हो सर्वेश तुम
आधार सब के ईश तुम

अंतर में विद्यमान तुम
 हो सर्वशक्तिमान तुम    

Saturday, July 28, 2012

आनंद दायक है प्रभु

आनंद दायक है प्रभु ,
आनंद देता है
मूढ़  है पर आदमी 
दुःख ढूंढ लेता है

ईश्वर ने क्या  दिया कोई -
कहने की बात है ?
सब दिख रहा चारों  तरफ
यूँ   साफ़ साफ़ है 

रहने को दी है ये धरा
सर पे है आसमान
लेने को सांस वायु है
जिसमे बसे है प्राण

पीने को मीठा जल दिया
खाने को फल और शाक 
बीजों में भर दी फसल यूँ
उगता रहे अनाज

मानव को सुन्दर तन दिया
जिसमें मिले सब अंग
हर अंग के उपयोग से
जीने का मिलता ढंग

सागर दिए नदिया भी दी
बादल बने अनंत
जब वृष्टि बन कर जल  गिरे
आ जाता है वसंत

पत्तों को उसने रंग दिया
फूलों को उसने रूप
सूरज में भर दी रौशनी
जो आ रही बन धूप

रातों को देकर चाँद को
तारे सजाये हैं
पृथ्वी पे जिसकी चाँदनी
चादर बिछाये है

सबसे बड़ा उपकार उसने
हम पे है किया
चिंतन दिया , मनन दिया
मष्तिष्क जब दिया