मन तरंग

मन तरंग
लहरों सा उठता गिरता ये मानव मन निर्माण करता है मानवीय मानस चित्रण का

Tuesday, February 22, 2011

ईश्वर ! ईश्वर ! ईश्वर !

ईश्वर ! ईश्वर ! ईश्वर !
 
पंछियों  के कलरव में
जंगलों के नीरव में
कोयल की कुहुक में
चिड़ियों की चहक में
होता है एक स्वर -
ईश्वर ! ईश्वर ! ईश्वर !
 
वर्षा की टप टप  में
मेढक की टर टर में
बिजली की तड़पन में
पत्तों की खडकन में
होता है एक स्वर -
ईश्वर ! ईश्वर ! ईश्वर !
 
नव-शिशु के रोने में
चुप होके सोने में
नन्ही सी धड़कन में
हलकी सी सिहरन में
 होता है एक स्वर -
ईश्वर ! ईश्वर ! ईश्वर !

Wednesday, February 16, 2011

तन मंदिर

जीवन को अर्थ दीजिये
सांसे मत व्यर्थ लीजिये
क्षण क्षण का मोल बहुत है
हर दिन कुछ कर्म कीजिये
जीवन को अर्थ दीजिये

मंदिर है तन आपका
सांसे हैं क्रम जाप का
ईश्वर साक्षात् आत्मा
ईश्वर की भक्ति कीजिये
जीवन को अर्थ दीजिये

बुद्धि है चिंतन मनन
मन जिसमे भगवत  भजन
भोजन नैवैध्य देव का
भावना से भोग कीजिये
जीवन को अर्थ दीजिये

ईश्वर की पूजा है कर्म
कर्म को ही समझे बस धर्म
स्वस्थ  मन शरीर स्वस्थ हो
योग प्राणायाम कीजिये
जीवन को अर्थ दीजिये

मंदिर को साफ़ कीजिये
स्नान ध्यान आप कीजिये
तन मन को निर्मल करें
तन का अभिषेक कीजिये
जीवन को अर्थ दीजिये

पूजा का फल मिलेगा
जीवन को बल मिलेगा
चित्त में प्रसन्नत्ता रहे
जीवन दीर्घायु कीजिये
जीवन को अर्थ दीजिये

Saturday, February 12, 2011

मन के दरवाजे से प्रभु आयेंगे

जब मंजिल कहीं नजर नहीं आती हो
राहों की मुश्किल तुम्हे रुलाती हो
जब नभ पर अँधियारा बढ़ आया हो
और तेज हवा से अंधड़ आया हो
तब हाथों को ले जोड़ ' प्रभो ' कहना
और नैनो को कर मूँद 'प्रभो' कहना
प्रभु पास तुम्हारे चल कर आयेंगे
दोनों हाथों से तुम्हे उठाएंगे !
 
जब मन में कोई उलझन हो भारी
जब उथल पुथल लगती दुनिया सारी
जब सारे रस्ते बंद नजर आते
जब प्रश्नों  के उत्तर नहीं मिल पाते
तब मन में करना ध्यान और कहना
'प्रभु मदद करो, अब चुप मत रहना'
मन के दरवाजे से प्रभु आयेंगे
और सारे प्रश्नों को सुलझाएंगे
 
जब सारे अपने बेगाने लगते
जाने पहचाने अनजाने लगते
जब लोगों पर विश्वास ख़त्म होता
अपनों के हाथों घोर  जख्म होता
तब उसको अपना मान, शांत होना
उसके चरणों में बैठ दर्द रोना 
सर सहलाने को तब प्रभु आयेंगे
आंसू पोछेंगे तुम्हे मनाएंगे