ईश्वर ! ईश्वर ! ईश्वर !
पंछियों के कलरव में
जंगलों के नीरव में
कोयल की कुहुक में
चिड़ियों की चहक में
होता है एक स्वर -
ईश्वर ! ईश्वर ! ईश्वर !
वर्षा की टप टप में
मेढक की टर टर में
बिजली की तड़पन में
पत्तों की खडकन में
होता है एक स्वर -
ईश्वर ! ईश्वर ! ईश्वर !
नव-शिशु के रोने में
चुप होके सोने में
नन्ही सी धड़कन में
हलकी सी सिहरन में
होता है एक स्वर -
ईश्वर ! ईश्वर ! ईश्वर !